लता दीदी को अलविदा कैसे कहूं ?

इस भरी दुनिया में आज भारतीय संगीत हमेशा के लिए तन्हा हो गया. स्वर लहरियां सदा के लिए सो गई हैं. गीत के बोलों का श्रृंगार लुट गया है. जो हुआ है उसके बाद न सुनने को कुछ शेष बचा है ना बताने को. लता दीदी विदा हो गईं. वो अस्वस्थ थीं सबको पता था, नीयति के नियम भी सबको पता हैं अगर नहीं पता है तो बस ये कि उनके बिना कैसे जियें. हम सबकी मिट्टी में लता दीदी का कुछ हिस्सा गुंथा हुआ है, वो अलग कैसे होगा और अगर होगा तो उसके बाद कितना बचेंगे हम.

लता दीदी संगीत साधक भर नहीं थीं, न गायिका भर थीं जो फिल्मों में गाती थीं. वो हम सबकी रूह का वो मखमली एहसास थी जहां जाकर आप अपने हिस्से का मैं जी लेते थे. कभी आंसू बहाकर, कभी ठिठोली कर कभी प्यार में डूबकर कभी खुद को ही डुबोकर. दीदी क्या गई ये तमाम एहसासात अकाल मृत्यु की शैय्या पर चले गए, जहां क्या बचेगा क्या नहीं, कोई नहीं जानता. लता दीदी को अलविदा कैसे कहूँ क्योंकि अगर उन्हें विदा किया तो मन-आंगन की रौनक चली जायेगी. हम सबके हिस्से की कुछ बातें खो जाएंगी. लता दी आप थीं तो सब सुर थे सारे स्वर थे, दिल भर जाए ऐसे भाव थे, अब उन्हें किस आवाज़ में ढूंढ पाएंगे हम. रस्म भर नहीं है आपके बाद आपको श्रद्धांजलि देना. क्योंकि अपने ही किसी हिस्से को अलग कर श्रद्धांजलि देने का अनुभव कहाँ हैं हमें.

 

गंगेश गुंजन
एडिटर इन चीफ

Share with family and friends:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 + 6 =