पूर्णिया : Lesson Behind Bypoll Result – रूपौली के वोटरों का मिजाज भांपने में चूके एनडीए और आईएनडीआईए के रणनीतिकार, भारी पड़े निर्दलीय शंकर सिंह। सियासी तौर पर बिहार में वोटरों के मूड को भांपने में माहिर माने वाले दिग्गजों को पूर्णिया के रूपौली विधानसभा क्षेत्र के वोटरों ने उपचुनाव में ऐसा झटका दिया है कि उनसे बगलें भी नहीं झांकी जा रही। जदयू-भाजपा के दिग्गजों से लेकर राजद-कांग्रेस के साथ ही उनके सुर में सुर मिलाने वाले निर्दलीय सांसद पप्पू यादव भी जिन प्रत्याशियों के समर्थन में खुलकर उपचुनाव के दौरान वोटरों के बीच जाकर मतदान की अपील की, रूपौली के वोटरों ने उसे जिस अंदाज में खारिज किया, उससे सभी हैरत में हैं। शनिवार को कुल 12 राउंड की गिनती के दौरान छह राउंड तक तमाम हो रहे सियासी दावे सातवें राउंड के बाद जिस तह औंधे मुंह गिरे, उसने सियासी दिग्गजों उस महारत पर ही सवाल खड़ा कर दिया कि चुनाव फिजां को भांपने के माहिर हैं। जी हां, वोटरों ने चुपचाप कांटे की टक्कर में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह को जीताकर विधायक बना दिया और सभी ताकते ही रह गए।
शंकर सिंह का विनम्र संदेश – ‘जनता भगवान होती है…जीत उन्हीं को समर्पित’
यह अनायास ही नहीं था कि जीत का सर्टिफिकेट मिलने के बाद शंकर सिंह ने कहा कि ‘जनता भगवान होती है। यह जीत मेरी नहीं रूपौली के जनता की है। उन्होंने मुझे अपना आशीष दिया। यह जीत मैं रूपौली की जनता को समर्पित करता हूं’। शंकर सिंह इस इलाके में बाहुबली नेता के तौर पर जाने जाते हैं। शंकर सिंह ने 2005 में सियासत में एंट्री ली थी। तब स्व. रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। शंकर सिंह बिहार लिबेरेशन आर्मी के कमांडर रहे हैं। कभी कोसी के इलाके में नॉर्थ लिबरेशन आर्मी चलाने वाले शंकर सिंह ने बिहार के सभी सियासी दिग्गजों को मात देते हुए रूपौली विधानसभा का उपचुनाव जीत लिया और रूपौली में राजद और जदयू दोनों ने गंगौता जाति के उम्मीदवार यानी अति पिछड़ा को टिकट दिया था जबकि सभी जातीय समीकरण को ध्वस्त करते हुए वोटरो ने निर्दलीय शंकर को ज्यादा पसंद किया। रुपौली में इनकी अच्छी खासी पैठ मानी जाती है। उनकी छवि अगड़ी जाति में अच्छी मानी जाती है। हालांकि, इस बार उन्हें पिछड़ी जाति का वोट मिला है। जेडीयू से टिकट नहीं मिलने के बाद इन्होंने निर्दलीय उतरने का फैसला लिया। इनके सामने जेडीयू के कलाधर मंडल और आरजेडी की बीमा भारती थीं। चुनावी हलफनामा पर नजर डालें तो पता चलता है कि इनके ऊपर कुल 9 मुकदमे हैं। इनमें हत्या के प्रयास, उगाही, एससी-एसटी के खिलाफ जाति सूचक शब्द का इस्तेमाल करना शामिल हैं। वहीं इनकी पत्नी इनसे ज्यादा टैक्स भरती हैं। अब रूपौली से फिर विधायक बने शंकर सिंह काफी दिनों से सभी समाज के लोगों के बीच अपनी सक्रियता दिखा रहे थे।उनकी इस सक्रियता का असर दिखा कि वह इस सीट पर गोलबंदी करने में सफल रहे।
19 साल बाद फिर शंकर सिंह बने रूपौली के वोटरों की पसंद
रूपौली विधानसभा की मतगणना में शनिवार को शंकर सिंह के ब्रांडेड दलों के प्रत्याशियों पर भारी पड़ने पर अब सूबे के सियासदां लोगों की जुबान बदल गई है। अब वही कहने लगे हैं कि पूर्णिया में निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने का हवा चल रही है। इससे पहले पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव के बाजी मारी। अब उसी पूर्णिया के ही रूपौली विधानसभा सीटे से निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह का परचम फहरा है और उन्होंने इस सीट से बड़ी जीत हासिल की है। उन्होंने भी पप्पू यादव के तरह ही राजद और जदयू प्रत्याशियों को पटखनी दी। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी के बागी शंकर सिंह ने 19 साल बाद जीत का स्वाद चखा। एनडीए को इस सीट पर जीत आसान लग रही थी। उधर, पप्पू यादव और तेजस्वी भी इस सीट पर राजद प्रत्याशी बीमा भारती के समर्थन में खड़े थे लेकिन बाजी हाथ लगी निर्दलीय शंकर सिंह के यानी वोटरों ने अपनी कसौटी पर ब्रांडेड दलों के प्रत्याशियों को वह तवज्जो नहीं दी जो शंकर सिंह के लिए मतगणना के आखिरी राउंड तक देखने को मिली।
रूपौली सीट से साल 2000 सियासत में सक्रिय रहे हैं बाहुबली शंकर सिंह
उपचुनाव के नतीजे आने के बाद बिहार के दोनों प्रमुख सियासी खेमों में हार की वजहों पर लगातार मंथन का दौर शुरू हो गया है तो इसी बीच दिलचस्प जानकारियां वोटरों के बीच से ही फिर से विधायक बने शंकर सिंह के बारे में सामने आ रही हैं। वह रूपौली विधानसभा सीट से साल 2000 से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया तो 44,994 वोटों के साथ वह दूसरे स्थान पर रहे थे। बाद में फरवरी 2005 में वह रूपौली विधानसभा से लोजपा के टिकट पर विधायक बने थे। हालांकि, दोबारा फिर नवंबर 2005 में चुनाव हुआ तो, उनकी हार हो गई थी। वह छह बार रुपौली सीट से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में शंकर सिंह राजद समर्थित लोजपा के उम्मीदवार थे। चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे। वहीं, 2015 में पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ा लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे थे। इसी तरह 2020 में लोजपा ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया, जिसमें 44, 994 वोट लाकर वह दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव से पहले रूपौली सीट जदयू के पाले में थी। शंकर सिंह लोजापा (रामविलास) के सदस्य थे। टिकट मिलने की उम्मीद पर पानी फिरते देख शंकर सिंह ने इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे।
मतगणना के दौरान शंकर सिंह ने छठे राउंड से बनाई बढ़त
निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने जदयू उम्मीदवार कलाधर मंडल का मतगणना के दौरान पहले राउंड से ही लगातार पीछा किया। जैसे ही छठें राउंड का रिजल्ट आया तो शंकर सिंह ने कलाधर मंडल से 501 वोटों की अपनी बढ़त बनाई और फिर उसके बाद लगातार आगे बढ़ते रहे। वहीं बारहवें राउंड में जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार ने जीत की घोषणा की। बारहवें राउंड में शंकर सिंह ने 8211 वोट से जीत हासिल की और उन्हें कुल 67779 वोट मिले। चुनाव परिणाम आने के बाद शंकर सिंह ने समर्थकों ने एक-दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी।
बिहार की सत्ता के क्वार्टर फाइनल में जीते शंकर सिंह के एनडीए में जाने के कयास
रूपौली उपचुनाव को बिहार में सत्ता का क्वार्टर फाइनल माना जा रहा था क्योंकि बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यह सीट से जदयू की विधायक रहीं बीमा भारती के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी जो 2000 में रूपौली से निर्दलीय विधायक बनी थीं। उसके बाद 2005 से बीमा लगातार जदयू की टिकट पर विधायक रहीं। इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बीमा ने दांव खेलते हुए जदयू से इस्तीफा दिया और राजद खेमे में चली गई थीं। राजद ने उन्हें पूर्णिया से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह हार गईं। बीमा के विधायक पद से इस्तीफे से खाली हुई रूपौली सीट पर हुए उपचुनाव में राजद ने बीमा पर भरोसा जताया तो उन्हें लोकसभा में हराने वाले निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने रूपौली उपचुनाव में बीमा भारती के समर्थन में बयान भी जारी किया लेकिन बात नहीं बनी। यही नहीं, रूपौली में सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम विजय सिन्हा व सम्राट चौधरी, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान से लेकर जीतनराम मांझी और आईएनडीआईए गठबंधन की ओर से राजद नेता तेजस्वी यादव समेत कांग्रेस ने भी खूब जोर आजमाइश की। उसके बावजूद एनडीए और आईएनडीआईए के लिए यह हार एक बड़ा सबक है। हालांकि निर्दलीय शंकर सिंह की जीत के बाद अब कयासों का दौर तेज है कि शंकर सिंह एनडीए खेमे में ही रहेंगे क्योंकि शंकर सिंह लंबे समय तक लोजपा से जुड़े रहे हैं जो कि इस समय चिराग पासवान की अगुवाई में एनडीए का हिस्सा है।