रांची: झारखंड में चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। राज्य में दो चरणों में मतदान होना है—पहला चरण 13 नवंबर और दूसरा 20 नवंबर को। दोनों प्रमुख गठबंधन, एनडीए और इंडिया, अपने-अपने चुनावी वादों के साथ मैदान में हैं। हालांकि, उनके घोषणापत्र (मेनिफेस्टो) को लेकर जनता के बीच संशय बरकरार है।
इन दिनों राज्य में स्टार प्रचारकों की आवाजाही तेज हो गई है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने रैलियां कीं। योगी आदित्यनाथ की कोडरमा में हुई सभा में भारी भीड़ देखी गई, जबकि खड़गे की सभा में अपेक्षाकृत कम लोग पहुंचे।
भाजपा और एनडीए अपने फायरब्रांड नेताओं पर भरोसा कर रही है। वहीं, इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सभाओं में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन को सुनने बड़ी संख्या में लोग जुट रहे हैं। लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक फीका रहा है।
राज्य में कांग्रेस की स्थिति कमजोर नजर आ रही है। संगठन स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता में कमी स्पष्ट है। चुनावी प्रचार में झामुमो के मुकाबले कांग्रेस पिछड़ी हुई दिख रही है। झामुमो की मजबूत संगठनात्मक पकड़—बूथ लेवल से जिला स्तर तक—उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव सिर्फ बड़े नेताओं की सभाओं से नहीं जीते जाते। चुनावी जीत के लिए जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मेहनत जरूरी होती है। कांग्रेस इस पहलू में कमजोर दिख रही है, जबकि झामुमो अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा रहा है।
झारखंड में कांग्रेस हमेशा से झामुमो के मुकाबले “छोटे भाई” की भूमिका में रही है। अब देखना यह होगा कि जनता इन दोनों गठबंधनों के बीच किसे चुनती है और क्या कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन को वापस पा सकेगी।