Friday, October 31, 2025
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बिहार चुनाव: NDA और महागठबंधन के घोषणापत्र में किस पर फोकस? दोनों के घोषणा पत्र में..
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Jharkhand HC Order:332 डीएसपी वरिष्ठता सूची रद्द, जेपीएससी अंक आधारित नई सूची जारी

झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर 332 डीएसपी की पुरानी वरीयता सूची रद्द कर दी गई। जेपीएससी परीक्षा के अंकों के आधार पर नई सूची जारी की गई है जो 1 जनवरी 2016 से प्रभावी होगी।Jharkhand HC Order: रांची: झारखंड हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण आदेश के बाद राज्य के गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने 332 डीएसपी (Deputy Superintendent of Police) की पुरानी वरीयता सूची रद्द कर दी है। अब नई वरीयता सूची जेपीएससी परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर तैयार की गई है। यह सूची 31 अक्टूबर (शुक्रवार) को जारी की गई और इसे 1 जनवरी 2016...

Bihar Election 2025: नीतीश–तेजस्वी की अग्निपरीक्षा , NDA vs Mahagathbandhan Political Battle in First Phase

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले फेज में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और एनडीए-महागठबंधन के दिग्गजों की सियासी किस्मत दांव पर लगने वाली है। बिहार चुनाव 2025: पहले चरण में सत्ता की ‘प्रैक्टिकल परीक्षा’ Bihar Election 2025 पटना: बिहार में चुनावी माहौल इस बार किसी एग्ज़ाम सेंटर से कम नहीं। बस फर्क इतना है कि यहां पेन-पेपर की जगह ईवीएम है और कॉपियां गिनने वाले मतदाता। पहले फेज की वोटिंग 121 सीटों पर होनी है, और दिलचस्प बात ये कि जिस इलाके में मतदाता बटन दबाएंगे, वहीं से तय होगा कि सत्ता की ‘कॉपी’ किसके हाथ में जाएगी। नीतीश कुमार और तेजस्वी...

अंधविश्वास में झारखंड में फिर हत्या, डायन बताकर महिला को उतारा मौत के घाट

अंधविश्वास के कारण 60 वर्षीय बुजुर्ग महिला की बेरहमी से हत्या कर दी गई। ग्रामीणों ने महिला पर डायन-बिसाही का आरोप लगाते हुए उसकी हत्या कर दी और शव को गोईलकेरा जाने वाली पुलिया के पास फेंक दिया। घटना पश्चिमी सिंहभूम जिले के सोनुवा प्रखंड के बालजुड़ी गांव की है।अंधविश्वास में हत्या शुक्रवार सुबह ग्रामीणों ने पुलिया के पास महिला का शव देखा और तुरंत पुलिस को सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। मृतका अपने छोटे बेटे-बहू बेटी के साथ गांव में रहती थी। गांव में पिछले कुछ दिनों...

Bihar Election 2025: बिहार में फिर चुनावी हत्या ! लोकतंत्र की धरती पर हिंसा का काला इतिहास

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Bihar Election 2025: कभी भारत के सबसे अधिक राजनीतिक रूप से सक्रिय प्रदेशों में गिना जाने वाला बिहार, चुनावी हिंसा के मामले में भी बदनाम रहा है। यह वही राज्य है, जहां कभी ‘वोट डालना’ साहस की निशानी माना जाता था और ‘बूथ कैप्चरिंग’ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा। गुरुवार को मोकामा में जन सुराज पार्टी के एक समर्थक की हत्या ने एक बार फिर उस दौर की याद दिला दी, जब बिहार में चुनाव और हिंसा एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे।

बूथ कैप्चरिंग से लेकर हत्याओं तक

बिहार में चुनावी हिंसा का इतिहास देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर गहरा दाग है। 1960 और 70 के दशक में जहां छिटपुट घटनाएं होती थीं, वहीं 1980 के दशक तक आते-आते यह एक भयावह रूप ले चुकी थीं। राज्य में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना बेगूसराय में दर्ज की गई, जिसने देशभर की चुनावी प्रक्रिया को शर्मसार कर दिया। 1980 के दशक में बूथ लूट और अपहरण की घटनाएं इतनी आम हो गईं कि इसे “चुनावी परंपरा” मान लिया गया। सत्ता में रहने वाली पार्टियों पर बूथ कब्जाने और विरोधियों को डराने-धमकाने के आरोप लगते रहे।

राजनीतिक हत्याओं की लंबी सूची

बिहार में राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला 1965 में शुरू हुआ, जब दक्षिण गया से कांग्रेस विधायक शक्ति कुमार की हत्या कर दी गई थी। 1972 में सीपीआई विधायक मंजूर हसन, 1978 में सीताराम मीर, 1984 में कांग्रेस नेता नगीना सिंह और 1990 में जनता दल विधायक अशोक सिंह की हत्या ने पूरे राज्य को हिला दिया। 1998 में बृज बिहारी प्रसाद और देवेंद्र दुबे जैसे नेताओं की हत्याओं ने इस काले अध्याय को और गहरा कर दिया। सीपीएम के विधायक अजीत सरकार की दिनदहाड़े हत्या उस दौर की अराजक राजनीति का प्रतीक बन गई।

हिंसा के आंकड़े बोलते हैं

1969 में बिहार में पहली बार व्यापक चुनावी हिंसा दर्ज हुई, जिसमें सात लोग मारे गए। 1977 के चुनाव में 194 घटनाएं हुईं और 26 मौतें हुईं।1985 के चुनाव में हिंसा की 1370 घटनाएं दर्ज हुईं। यह अब तक का सबसे हिंसक चुनाव था, जिसमें 69 लोगों की जान गई। 1990 में 87 और 1995 में 54 लोगों की मौत हुई। 2000 के चुनाव में भी 61 लोगों की जान गई। 2005 में राष्ट्रपति शासन के दौरान हिंसा जारी रही, लेकिन उसी साल के अक्टूबर चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जब एनडीए सरकार बनी, तब से हिंसा की घटनाओं में गिरावट आई।

2005 के बाद बदलाव की शुरुआत

2005 के बाद बिहार ने चुनावी हिंसा से राहत पाई। प्रशासनिक सख्ती, पुलिस सुधार ने इस प्रवृत्ति पर कुछ हद तक रोक लगाई। 2010 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ पांच लोगों की मौत हुई। यह पिछले दशकों की तुलना में बड़ा बदलाव था। लेकिन मोकामा की हालिया घटना यह बताती है कि भले ही बिहार बदला हो, उसकी राजनीति की जड़ें अब भी पुराने दौर से पूरी तरह नहीं कट पाई हैं।

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