नई दिल्ली : बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन से बाहर आने के कारण राज्यसभा के उप सभापति के
सामने पेचीदा स्थिति पैदा हो गई है. भाजपा-जेडीयू की राहें अलग होने के साथ ही
इसे लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया कि जेडीयू सांसद हरिवंश
राज्यसभा उप सभापति का पद पर बने रहेंगे या पार्टी के साथ जाएंगे.
स्वयं हरिवंश ने इसे लेकर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन
चर्चाओं की मानें तो वे जल्द ही नीतीश कुमार से मुलाकात कर सकते हैं.
ललन सिंह के बयान से बढ़ी मुश्किलें
जब से भाजपा-जेडीयू के अलगाव पर मुहर लगी है, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश के निर्णय पर कयास लगाए जा रहे थे लेकिन एक दिन पहले ही जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने उनकी मुश्किलें और भी बढ़ा दी. ललन सिंह का दावा है कि नीतीश कुमार को दोबारा एनडीए में शामिल होने की सलाह जिन नेताओं ने दी थी, उनमें हरिवंश भी थे.
क्या सोमनाथ की तरह उठाएंगे कदम?
हालांकि यह साफ नहीं है कि जेडीयू नेतृत्व उन्हें उप सभापति के पद से हटने को लेकर क्या कहती है. लेकिन हरिवंश के सामने ठीक वैसी ही परिस्थितियां पैदा हो गई हैं जब 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सीपीएम ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी ने पद छोड़ देने को कहा. सोमनाथ चटर्जी ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया, जिसके बाद सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.
कई दशकों तक पत्रकार रहे हरिवंश
राजनीति में आने से पहले हरिवंश ने कई दशकों तक पत्रकार के रूप में अपनी सेवाएं दीं. वे ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’ और ‘प्रभात खबर’ जैसे प्रकाशनों में अहम पदों पर रहे. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रेरित हरिवंश, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सलाहकार के रूप में भी काम किया था. 2014 में वे पहली बार और 2020 में जेडीयू से राज्यसभा के लिए दूसरी बार चुने गए.