शशांक शेखर की रिपोर्ट
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हजारीबाग : हजारीबाग में बंद हो गया जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र। जिला ग्रामीण विकास अभिकरण हजारीबाग के द्वारा व सांसद विकास निधि से निर्मित सदर अस्पताल परिसर में स्थित जिला विकलांग पुनर्वास केन्द्र बदहाल स्थिति में है।
जिस कमरे में विकलांग पुनर्वास केंद्र बनाया गया था, उसे हजारीबाग स्वास्थ्य विभाग ने टीकाकरण केंद्र बना दिया है। कहा जाए तो जिस उद्देश्य से विकलांग पुनर्वास केंद्र बनाया गया था उसका अस्तित्व ही मिट चुका है।
इतिहास के पन्नों में दफन हुआ जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र
पूरे विश्व भर में विश्व विकलांग दिवस मनाया जा रहा है। दूसरी ओर हजारीबाग में जिस केंद्र को दिव्यांग जनों को मुख्य धारा में जोड़ने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए तैयार किया गया था वह अब इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है।
देश के पूर्व वित्त एवं विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने 5 अप्रैल 2002 को विकलांग पुनर्वास केन्द्र का उद्घाटन किया था। इसका उद्देश्य दिव्यांगों के लिए आर्टिफिशियल हाथ पैर मुफ्त में हजारीबाग के सदर अस्पताल में ही उपलब्ध कराना था। पुनर्वास केन्द्र के उद्घाटन के बाद दो तीन वर्षों तक सब ठीक ठाक रहा।
वहीं विकलांग पुनर्वास केन्द्र सह गोदाम का संचालन रेड क्रॉस सोसाइटी द्वारा किया जाता था। इसका स्थापना केन्द्र सरकार के द्वारा की गयी थी। बाद में पुनर्वास केन्द्र राज्य सरकार के जिम्मे आ गया। लगभग 17 से 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी पुनर्वास केंद्र काम नहीं कर रहा है।

अनेकों पत्राचार के बाद भी नहीं खुला जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र
आलम यह है कि पुनर्वास केंद्र में अब स्वास्थ्य विभाग ने टीकाकरण केंद्र खोल दिया है। इसे लेकर दिव्यांगों के लिए काम करने वाले समाज सेवी गणेश कुमार सिट्टू ने पत्राचार भी किया और ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि जल्द से जल्द पुनर्वास केंद्र खोला जाए। लेकिन जिला प्रशासन और सरकार की उदासीनता के कारण यह केंद्र अब तक नहीं खुला है।

हजारीबाग के जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र में नहीं मिल पा रहा है दिव्यांगों को प्रशिक्षण
गणेश कुमार सिट्टू का कहना है कि विश्व दिव्यांग दिवस मनाया जा रहा है। हजारीबाग में दिव्यांगों को उनका अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। हजारीबाग जिले में लगभग 23997 चिन्हित दिव्यांग हैं। चतरा कोडरमा और गिरिडीह के दिव्यांग को जोड़ दिया जाए तो 60000 से अधिक सर्वेक्षित दिव्यांग है । ये हजारीबाग जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र पर आश्रित थे।
इस केंद्र में कृत्रिम अंग बनाने की व्यवस्था थी। साथ ही दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता था लेकिन पुनर्वास केंद्र बंद हो जाने के कारण कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतरी।