लोहरदगा लोकसभा सीट पर इन दो पार्टियों का रहा है दबदबा, इस बार किसे मिलेगा मौका ?

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आज हम जानेंगे लोहरदगा लोकसभा के बारे में .हालांकि लोहरदगा लोकसभा में लोहरदगा के अलावा रांची और गुमला के भी कुछ क्षेत्र आते हैं.

लोहरदगा सीट से 2024 लेकसभा चुनाव के प्रत्याशियों की बात करें तो

भाजपा ने इस बार समीर उरांव पर भरोसा जताया है, लेकिन महागठबंधन की ओर से प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया गया है.

अब महागठबंधन की कांग्रेस और झामुमो दोनों पार्टियां इस सीट पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है.

वैसे हमेशा से यह सीट कांग्रेस कोटे में आती रही है इसलिए लोहरदगा से कांग्रेस अपने उम्मीदवार उतारेगी इसकी अधिक संभावना जताई जा रही है. लेकिन अब खबरें यह भी है कि झामुमो से बिशुनपुर विधायक चमरा लिंडा भी इस सीट पर दावा ठोक सकते हैं.

कांग्रेस से संभावित प्रत्यशियों में भी दो नेताओं के नाम आगे आ रहे हैं. रामेश्वर उरांव और सुखदेव भगत के बीच भी इस सीट को लेकर खींचतान हो सकती है.

महागठबंधन ने अब तक झारखंड के किसी भी सीट पर अपने प्रत्याशी के नामों की घोषणा नहीं की है, माना जा रहा है कि लोहरदगा सीट के कारण ही महागठबंधन की सीट शेयरिंग का पेंच फंस रहा है.

लोहरदगा लोकसभा सीट पर गुमला जिले के बिशनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा की ओर से दावेदारी पेश करने की बात सामने आ रही है. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक गलियारे में इस बात को लेकर चर्चा जरूर है. अगर चमरा लिंडा लोहरदगा सीट से मैदान में उतरते हैं तो यहां चुनाव एक नया मोड़ ले सकता है.

राजनीतिक गलियारों में खबरें यह भी हैं कि अगर झामुमो ने चमरा लिंडा को टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं.

बता दें चमरा लिंडा लोहरदगा लोकसभा से 3 बार पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं हालांकि उनकी तीनों चुनाव में जीत उनकी नहीं हुई लेकिन उन्होंने अच्छा जनाधार जुटा लिया था.  साल 2004 में चमरा लिंडा ने स्वतंत्र चुनाव लड़ा और 58,947 वोटों से तीसरे नंबर पर रहे थे.

वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में चमरा लिंडा ने एक बार फिर निर्दलीय चुनाव लड़ा और 1,36,345 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को भी पीछे छोड़ दिया था.

और 2014 में चमरा लिंडा ने ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ा और 1,18,355 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.

हालांकि उन्होंने 2019 के चुनाव में लोकसभा में किस्मत नहीं आजमाई लेकिन अब एक बार फिर 2024 में वो लोहरदगा से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

लोहरदगा लोकसभा सीट में कांग्रेस औऱ झामुमो की दावेदारी से प्रत्याशी तय करने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है लेकिन उससे भी बड़ी समस्या कांग्रेस के लिए हो सकती है.

लोहरदगा से कांग्रेस को दो कद्दावर नेता लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. जिसमें पूर्व सांसद और वर्तमान लोहरदगा विधायक रामेश्वर उरांव और लोहरदगा से पूर्व विधायक सुखदेव भगत का नाम शामिल हैं. दोनों ही नेता इस सीट के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

हालांकि अब लोहरदगा लोकसभा सीट पर किस पार्टी से उम्मीदवार होगा ये तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा.

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हम लोहरदगा लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें उससे पहले यहां की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से आपको अवगत करा देते हैं. लोहरदगा लोकसभा एसटी आरक्षित सीट है और यहां से भाजपा के सुदर्शन भगत सांसद हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार लोहरदगा में सबसे अधिक एसटी वोटर हैं जिनका वोट प्रतिशत लगभग 50 फीसदी है.

लोहदगा लोकसभा में विधानसभा की 5 सीटें आती हैं. जिसमें लोहरदगा,मांडर,बिशुनपुर,सिसई और गुमला शामिल हैं. इन सभी विधानसभा सीटों पर महागठबंधन की पार्टियों का ही कब्जा है.

लोहरदगा से कांग्रेस के रामेश्वर उरांव विधायक हैं, वहीं मांडर में भी सीट कांग्रेस के पास है और शिल्पी नेहा तिर्की यहां से विधायक हैं. बाकी की तीन सीटों पर झामुमो का कब्जा है. गुमला में भूषण तिर्की, बिशुनपुर में चमरा लिंडा और सिसई में जिगा सुसारन होरो विधायक हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बीते तीन टर्म के सांसद सुदर्शन भगत का टिकट काट कर राज्यसभा सांसद समीर उरांव पर भरोसा जताया है

लोहरदगा लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो शुरुआत में यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा है. लोहरदगा लोकसभा के 16 टर्म में हुए चुनाव में सिर्फ दो बार अन्य पार्टियों की जीत हुई और 14 बार में इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस ने ही मुकाबला किया है. जिसमें 8 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की और भाजपा ने 6 बार इस सीट पर कब्जा किया है.

साल 1957 में रांची से अलग होकर लोहरदगा अलग संसदीय सीट के रुप में सामने आया. और 1957 में झारखंड पार्टी से इग्नेस बेक यहां से पहले सांसद बने.

वहीं दूसरे लोकसभा चुनाव से लोहरदगा में कांग्रेस ने अपना वर्चस्व स्थापित किया और लगातार तीन चुनाव में कांग्रेस ने लोहरदगा से जीत हासिल की.

जिसमें 1962 में डेविड मुंजनी कांग्रेस से सांसद चुने गए. 1967 में कांग्रेस से कद्दावर नेता कार्तिक उरांव ने जीत हासिल की और 1971 में भी कार्तिक उरांव ने कांग्रेस की जीत बरकरार रखी.

लेकिन 1977 में लोहरदगा से जनता पार्टी के लालू उरांव ने जीत दर्ज की.

अगले चुनाव यानी 1980 में  कांग्रेस ने एक बार फिर कार्तिक उरांव को मौदान में उतारा और कार्तिक उरांव ने लोहरदगा से तीसरी बार जीत दर्ज की.

1981 में कार्तिक उरांव के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी पत्नी सुमति उरांव ने संभाला.

1984 में कांग्रेस ने सुमति उरांव को टिकट दिया और सुमति उरांव ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

साल 1989 में भी लोहरदगा में कांग्रेस ने अपनी जीत का परचम लहराया और सुमति उरांव एक बार फिर सांसद बनी.

जिसके बाद साल 1991 में भाजपा ने लोहरदगा सीट से पहली बार जीत हासिल की और ललित उरांव लोहरदगा से भाजपा के पहले सांसद बने.

और 1996 में ललित उरांव ने अपनी जीत को दुहराया और यह सीट दोबारा भाजपा के झोली में गई.

साल 1998 में कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की और इंद्रनाथ भगत कांग्रेस से सांसद बने.

1999 में भाजपा के दुखा भगत ने जीत की.

और 2004 में कांग्रेस के रामेश्वर उरांव यहां से सांसद बने.

जिसके बाद भाजपा ने लोहरदगा सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई और साल 2009,2014 और 2019 में सुदर्शन भगत ने यहां से जीत हासिल की है.

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सुदर्शन भगत ने लोहरदगा में तीन टर्म भाजपा का पताका लहराया लेकिन इस बार भाजपा ने अपने उम्मीदवार बदल दिए. अब समीर उरांव का मुकाबला किस से होता है ये तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा लेकिन लोहरदगा लोकसभा के इतिहास से ऐसा लगता है कि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है.

हालांकि अब महागठबंधन जब अपने उम्मीदवार की घोषणा करेगी तब ही पता चल पाएगा कि यह सीट कांग्रेस की झोली में जाएगी कि झामुमो की. और चुनावी नतीजों के बाद यह स्पष्ट होगा कि जनता ने किसे अपना प्रतिनिधि चुना है.

 

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