रांची: राज्यपाल सह कुलाधिपति संतोष कुमार गंगवार ने रांची यूनिवर्सिटी (आरयू) में वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं को लेकर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कुलपति अजीत कुमार सिन्हा के कार्यकाल के दौरान हुए कार्यों की उच्चस्तरीय जांच और विशेष ऑडिट कराने का निर्देश दिया है।
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राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव नितिन मदन कुलकर्णी ने उच्च शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव राहुल कुमार पुरवार को पत्र भेजकर निर्देशित किया है कि विश्वविद्यालय में प्रशासनिक गतिविधियों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाए। समिति में राज्यपाल सचिवालय के विशेष कार्य पदाधिकारी (न्यायिक) को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।
इसके साथ ही, बीते तीन वर्षों में रांची विश्वविद्यालय में हुए निर्माण, खरीद, आपूर्ति और मरम्मत से संबंधित वित्तीय मामलों की विशेष ऑडिट रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश भी दिया गया है। इसके लिए वित्त सचिव को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह जल्द से जल्द ऑडिट करवा कर रिपोर्ट राजभवन को सौंपें।
रांची यूनिवर्सिटी – कुलपति कार्यालय की सज्जा पर 48 लाख खर्च!
राजभवन को प्राप्त शिकायतों में कहा गया है कि कुलपति अजीत कुमार सिन्हा के कार्यकाल में उनके कार्यालय की सज्जा और नवीकरण पर 48 लाख रुपए से अधिक खर्च किए गए। इस कार्य के लिए किसी प्रकार की टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। नैक मूल्यांकन की तैयारियों और मौलाना आजाद सीनेट हॉल के पुनर्निर्माण में भी वित्तीय गड़बड़ियों की शिकायतें सामने आई हैं। इन तथ्यों के बाद राजभवन ने कुलपति के किसी भी महत्वपूर्ण और नीतिगत निर्णयों पर फिलहाल रोक लगा दी है।
डीएसपीएमयू में शिक्षकों की नियुक्ति जांच के घेरे में
राज्यपाल ने एक अन्य आदेश में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू), रांची में प्रबंधन विभाग के अनुबंध शिक्षकों की नियुक्ति की जांच के भी निर्देश दिए हैं। शिकायतों और विश्वविद्यालय की ओर से प्राप्त प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल सचिवालय के विशेष कार्य पदाधिकारी (न्यायिक) और संयुक्त सचिव को 15 दिनों के भीतर विस्तृत जांच रिपोर्ट देने को कहा गया है।
पहले भी उठ चुके हैं सवाल
गौरतलब है कि इससे पहले भी रांची विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. कामिनी कुमार के कार्यकाल में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई थीं। जांच के बाद उन्हें कोल्हान यूनिवर्सिटी, चाईबासा स्थानांतरित किया गया था।
राज्यपाल के इन आदेशों से स्पष्ट है कि विश्वविद्यालयों में पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने की दिशा में अब सख्ती से कदम उठाए जा रहे हैं।