मुर्गे की बलि के साथ शुरु हुआ सोहराई पर्व

Seraikela-संताल आदिवासियों का प्रमुख पर्व- दीपावली की समाप्ति के साथ ही आदिवासी समुदाय का सोहराय पर्व की शुरुआत हो चुकी है. कृषि और पशापालन प्रधान आदिवासी समुदाय मे सोहराय मनाने का मुख्य उद्देश्य खेती किसानी के प्रमुख साथी गाय बैलों को खुश करना है. लहलहाती फैसलों को देख अपनी खुशी का इजहार करना है. यह आदिवासी समुदाय में खुशियां बांटने का त्योहार है. खास कर संताल आदिवासियों में यह धूमधाम से मनाया जाता है.

संताल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है सोहराई

कुछ इलाकों में यह पांच दिनों तक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत गोटा माड़ा के साथ होती है. इस अवसर पर संताल आदिवासी अपने अपने पशुओं को नदी नाला या तालाबों नहलाते हैं.

 पशुओं को नहाने के बाद गांव के एक छोर पर गांव के नायक के द्वारा

डकांउ मुर्गे की बलि दी जाती है.

फिर उसके मांस के साथ खिचड़ी बनायी जाती है,

उस खिचड़ी को प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है.

जिस जगह पूजा किया जाता है,

नायक उसी स्थान पर मुर्गी का अंडा रख पालतू जानवरों को दौड़ाता है,

जिस जानवर के पैर तैले अंडा फूटता ,

उस जानवर को काफी भाग्यशाली माना जाता है.

इसके बाद शाम को पालतू पशुओं की आरती उतारी जाती है.

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