डिजिटल डेस्क : यूपी के आस्ता गांव में दस्यु सुंदरी कुसमा नाइन की मौत पर खुशी में जलाए गए दीये। यूपी के औरैया के आस्ता गांव के लोग सोमवार को बेहद खुश हैं। गांव वालों की यह खुशी कुख्यात दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन की मौत की वजह से है।
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करीब 41 साल पहले कुसुमा नाइन ने इस गांव में भयानक नरसंहार किया था। वर्ष 1984 में कानपुर देहात के मई आस्ता गांव में 15 लोगों की हत्या की गई और एक महिला और उसके बच्चे को जिंदा जला दिया। इससे वह चंबल की सबसे खतरनाक डकैत बन गई।
तब कुसुमा ने दिनदहाड़े गांव के बच्चे बूढों समेत 14 लोगों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दिया था। यही नहीं, कुसुमा ने तब अपने साथियों से 2 लोगों की आंखें भी निकलवा ली थी।
उसके बाद उन लोगों के शव के चारों ओर घूमते हुए ठहाके लगाए थे और जाते-जाते कुसुमा नाइन ने फिल्मी अंदाज में गांव में आग लगा दिया था। आज सोमवार को दस्यु सुंदरी की मौत और अंतिम संस्कार की सूचना पर पूरे अस्ता गांव में घी के दीये जलाए जा रहे हैं।
41 साल पहले कुसुमा ने किया था नरसंहार…
41 साल पहले आस्ता गांव में हुए नरसंहार की घटना को पुलिस रिकार्ड एवं आज लोगों की लोगों की जुबानी सामने आ रहे किस्सों को मिलाने करने से रोंगटे खड़ी करने वाली कहानी सामने आती है।
तब बेहमई कांड में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने 22 लोगों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दिया था। उसी बेहमई कांड का बदला लेने के लिए दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन ने साल 1984 में मल्लाहों के गांव अस्ता में इस सामूहिक नरसंहार को अंजाम दिया था।

पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, सभी लोगों को धोखे से मौके पर बुलाया गया था। समझौते के नाम पर उन्हें एक जगह इकट्ठा किया गया और फिर गोली मार दी गई। उस घटना के बाद गांव के लोग दहशत के मारे भाग गए थे। फिर सरकार ने अपने तरीके से शवों का अंतिम संस्कार किया था।
इस गांव की रहने वाली बुजुर्ग महिला रामकुमारी ने बताया कि कुसुमा ने उनके परिवार के दो लोगों को गोली मारी थी। उनके उसके पति बांकेलाल और ससुर रामेश्वर शामिल थे। उन्हें कुसमा घर से उठाकर ले गई और गांव के 12 अन्य लोगों के साथ लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था।
आस्ता गांव की ही रहने वाली बुजुर्ग महिला सोमवती ने बताया कि उस वारदात में उसके पिता, ताऊ और चाचा मारे गए थे। उस घटना के बाद से वह रोज भगवान से प्रार्थना करती थी कि कुसुमा को गंदी मौत मिले।
आखिर भगवान ने उनकी सुन ली और कुसुमा नाइन तिल-तिल कर मरी है। बता दें कि टीबी की बीमारी की वजह से पीजीआई में भर्ती कुसुमा नाइन की मौत बीते शनिवार को हो गई थी।

पुलिस निगरानी में पंचतत्व में विलीन हुई कुसुमा नाइन
चंबल की सबसे खूंखार महिला दस्यु रही एवं दिवंगत फूलन देवी को डकैती की दुनिया में एक जमाने में पीटने वाली दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन अब इतिहास बन गई है। सोमवार को यूपी में चंबल के बीहड़ों में स्थित जालौन जिला के कुरौली गांव में कफन में लिपटी दस्यु सुंदरी कुसुमा का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से पुलिस अभिरक्षा में कर दिया गया।
उसके अंतिम दर्शन के लिए कुरौली गांव में जिलेभर से समाज के लोग जुटे। ग्रामीणों के साथ-साथ उनके पुराने परिचित और संबंधी भी अंतिम विदाई देने पहुंचे। उनके निधन की खबर से गांव में सन्नाटा पसरा रहा, लेकिन माहौल शांतिपूर्ण बना रहा।
सोमवार सुबह गांव में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और सोमवार सुबह विधि-विधान से अंतिम संस्कार कर दिया गया। पति केदार नाई उर्फ रूठे याज्ञिक ने मुखाग्नि दी।बीते रविवार रात दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन 47 साल बाद अपनी ससुराल आई तो कफन में लिपटी हुई।

उनके अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क रहा। गांव में रातभर भारी पुलिस बल तैनात रहा। पुलिस के मुताबिक, इटावा जेल में बंद कुसमा की तबीयत खराब होने पर उसे सैफई मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया था।
इस पर उसने अपने परिजनों से मिलने की इच्छा जताई थी। उस पर सिरसाकलार थाने से रामजी के पास भी फोन आया था। लेकिन उन्होंने मिलने से मना कर दिया था। ज्यादा हालत खराब होने पर उसे लखनऊ भेज दिया गया था।
कुसुमा नाइन की लखनऊ में बीते शनिवार की रात इलाज के दौरान मौत हो गई थी। अब दिवंगत हो चुकी दस्यु कुसुमा नाइन के बारे में चंबल में आज भी चर्चा छिड़ते ही लोगों के जुबां पर ताले लग जाते हैं और बोलती बंद हो जाती है।

शादी हुई केदार से और रही माधव-विक्रम मल्लाह और फक्कड़ संग…
पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, सत्तर और 80 के दशक में देश में जितनी महिला डकैत थीं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी। सिरसाकलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था।
कुसुमा के पिता गांव के प्रधान थे। चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। इकलौती संतान होने के चलते लाड़ प्यार से पल रही थी। 13 साल की उम्र में उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम हो गया।
एक दिन अचानक बिना किसी को कुछ बताए ही वह माधव मल्लाह के साथ चली गई। करीब 2 साल तक उसका कोई पता नहीं चला। इसके बाद उसने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह दिल्ली के मंगोलपुरी में माधव के साथ है।
तब पिता दिल्ली पुलिस के साथ पहुंचे और उसे घर ले आए। पिता ने उसकी शादी कुरौली गांव निवासी केदार नाई के साथ कर दी। माधव कुसुमा से प्रेम करता था।

…और दस्यु सुंदरी कुसुमा के खूंखार जीवन-यात्रा ने यहीं से रोचक मोड़ लिया। इसके आगे की गाथा पुलिस रिकार्ड में काफी रोचक है। माधव मल्लाह ने डकैत विक्रम मल्लाह का साथ पकड़ा और उसे बताया कि वह कुसुमा नाइन का दीवाना है।
उसके बाद तो विक्रम भी कुसुमा से मिलने को मचल उठा था। फिर विक्रम मल्लाह माधव को लेकर गैंग के साथियों के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंचा। उसने कुसुमा को अगवा कर लिया। इसके बाद वह माधव के साथ विक्रम गैंग में शामिल हो गई।
यानि कुरौली गांव से अगुवा करके बीहड़ ले जाई गई कुसमा सबसे पहले माधव के माध्यम से विक्रम मल्लाह गिरोह से मिल गई। इसके बाद वह करीब 8 वर्ष तक इस गिरोह में रही।
विक्रम की मौत हो जाने के बाद वह लालाराम के संपर्क में आई और कुछ दिन के बाद वह रामआसरे उर्फ फक्कड़ के संपर्क में आ गई और 16 साल तक बीहड़ में राज करती रही। वह इटावा के साथ साथ कानपुर व अन्य जेलों में भी रही।