Hazaribagh : हजारीबाग में बिना ऑपरेशन दवा से भी इलाज हो पाएगा. जिला में पंचकर्म प्रक्रिया से इलाज शुरू हो चुका है. पूरे राज्य भर में 10 ऐसे केंद्र बनाए गए हैं जहां अति प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति से इलाज होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयुर्वेद को लेकर विशेष जोर दे रहे हैं. आयुष मंत्रालय की ओर से पहल की जा रही है कि आयुर्वेद का अधिक से अधिक उपयोग हो.
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Hazaribagh : अति प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक इलाज पद्धति है
हजारीबाग में पंचकर्म प्रक्रिया से अब इलाज होगा. यह एक अति प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक इलाज पद्धति है. वैसा बीमारी जिसका इलाज संभव नहीं है. उसका भी इस पद्धति से संभव है. भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के द्वारा हजारीबाग के दीपूगढ़ा में 55 लाख की राशि से पंचकर्म प्रशिक्षण सह सेवा केंद्र की शुरुआत की गई है. जहां मरीजों का निशुल्क इलाज किया जाएगा. पूरे राज्य भर में 10 केंद्र बनाए गए हैं. जिसमें एक हजारीबाग में भी है.
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जिला आयुष पदाधिकारी डॉ श्याम नंदन तिवारी बताते हैं कि पंचकर्म आयुर्वेद की एक पारंपरिक विधि है. पंचकर्म आयुर्वेद की सदियों पुरानी इलाज पद्धति में एक है. जिसके माध्यम से तन से लेकर मन तक को शुद्ध किया जाता है ताकि शरीर के विषाक्त को बाहर निकाला जा सके. पंचकर्म में पांच क्रियाएं होती है जिसके माध्यम से रोगों का उपचार किया जाता है. वो पांच प्रक्रिया हैं- वमन, विरेचन, नस्य, रक्तमोक्षण और अनुवासनावस्ती.
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Hazaribagh : दीपू गढ़ा क्षेत्र अंतर्गत पंचकर्म केंद्र में इलाज शुरू
हजारीबाग के दीपू गढ़ा क्षेत्र अंतर्गत पंचकर्म केंद्र में इलाज भी शुरू हो चुका है. यह भवन बहुत पहले तैयार हो चुका था. लेकिन इलाज नहीं हो पा रहा था. ऐसे में हजारीबाग के सांसद मनीष जायसवाल के सांसद प्रतिनिधि रंजन चौधरी लगातार पत्राचार कर रहे थे. विभाग के वर्गीय पदाधिकारी से मुलाकात कर जल्द से जल्द शुरू करने की वकालत कर रहे थे. पंचकर्म खुल जाने के बाद उन्होंने खुशी भी जाहिर किया कि अब लोगों के इलाज संभव हो पाएगा.
पंचकर्म पद्धति से इलाज करना बेहद महंगा होता है. हजारों रुपया खर्च किया जाता है. हजारीबाग में यह निशुल्क सेवा लोगों को उपलब्ध कराई जा रही है.
ऐसे में जानना जरूरी है क्या है पंचकर्म चिकित्सा पद्धति…..
पंचकर्म शब्द दो शब्दों, पंच और कर्म से मिलकर बना है, जहां पंच का अर्थ है ‘पांच’ और कर्म का अर्थ है ‘कार्य’. पंचकर्म आयुर्वेद में एक प्राचीन चिकित्सीय पद्धति है, जो भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है. यह शरीर को शुद्ध करने, संतुलन बहाल करने और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए पाँच सफाई और कायाकल्प उपचारों का एक सेट है. इन विशिष्ट प्रक्रियाओं का उपयोग शरीर से संचित विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए किया जाता है, जिन्हें अमा दोष के रूप में जाना जाता है, ताकि ऊतकों को शुद्ध किया जा सके और शरीर की प्रणालियों को पुनर्जीवित किया जा सके.
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इसमें पाँच चरण होते हैं – ‘वमन’ (उल्टी), ‘विरेचन’ (शुद्धिकरण), ‘वस्ति’ (एनिमा), ‘नस्य’ (नाक की सफाई) और ‘रक्तमोक्षण’ (अशुद्ध रक्त का निष्कासन).
पंचकर्म के पांच प्राथमिक घटक हैं:
वमन (चिकित्सीय उल्टी): इस उल्टी में, ऊपरी श्वसन और पाचन तंत्र से अतिरिक्त बलगम या विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उल्टी की जाती है, विशेष रूप से अतिरिक्त कफ दोष (बलगम, भारीपन, जमाव) से संबंधित स्थितियों के लिए.
विरेचन (विरेचन): यह शरीर से अतिरिक्त पित्त दोष (गर्मी, पित्त, सूजन) और विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए हर्बल रेचक का उपयोग करके आंतों को साफ करने की एक नियंत्रित प्रक्रिया है.
बस्ती (एनीमा): औषधीय एनीमा या बस्ती को बृहदान्त्र को साफ करने और वात दोष (वायु, गति, सूखापन) को संतुलित करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.इस प्रक्रिया में हर्बल तेलों या काढ़े से मालिश शामिल हो सकती है और इसे पंचकर्म में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी उपचारों में से एक माना जाता है.
नास्य (नासिका चिकित्सा): नाक के माध्यम से हर्बल औषधीय तेलों या पाउडर का प्रशासन साइनस को साफ करने, मानसिक स्पष्टता में सुधार करने और श्वसन मार्गों में रुकावटों को दूर करने के लिए किया जाता है.
रक्तमोक्षण (रक्तस्राव): यह रक्त को शुद्ध करने के लिए सबसे अच्छे चिकित्सीय तरीकों में से एक है, जिसका उपयोग अक्सर रक्तप्रवाह में अत्यधिक गर्मी या विषाक्त पदार्थों से संबंधित स्थितियों के लिए किया जाता है. आधुनिक चिकित्सा विकल्पों के कारण आजकल इसका अभ्यास कम ही किया जाता है.
शशांक शेखर की रिपोर्ट–
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