पटना: राजनीति की दुनिया में जब बात बिहार की हो, तो बातों का भुलभूलैया बनना कोई नई बात नहीं है। इस समय बिहार में जो राजनीतिक घटनाक्रम चल रहे हैं, वह किसी भूतिया फिल्म से कम नहीं लग रहे। कहीं राजद और जदयू के दरवाजों पर सियासी तालों की आवाज गूंज रही है, तो कहीं रिश्तों के पुल टूटते जा रहे हैं। यही वो राजनीति है, जहां कभी पिता-पुत्र के रिश्ते दरवाजे खोलते हैं, तो कभी उन्हें बंद करने की कसम खाई जाती है। बिहार की राजनीति में अब कोई भी सियासी कदम सीधा नहीं रहता, जैसे किसी भुलभूलैया के चक्कर में हर कदम उलझा हुआ सा लगता है।
राजद के महाधिवेशन में यह सारा ड्रामा उस वक्त हुआ, जब लालू प्रसाद ने नए साल पर जदयू के लिए दरवाजा खोल दिया। पर तेजस्वी यादव ने उनका विरोध करते हुए कहा कि दरवाजा बंद रहेगा। अगर यह सियासी बवाल कोई फिल्म होती, तो शायद उसका नाम होता— “यू टर्न”। लेकिन यह कहानी तो “भूलभूलैया” जैसी लग रही है, जहां हर किरदार एक गलती से दूसरे मोड़ पर जाता है और नतीजा कुछ साफ नहीं होता।
तेजस्वी यादव ने नए साल पर एक नई उम्मीद जताई—”नया साल, नई सरकार”, और उनकी यह बयान बहुत कुछ उस कहानी जैसी है, जिसमें सरकार बदलने का ख्वाब देखा जाता है। हालांकि, नीतीश कुमार पर कोई टिप्पणी नहीं करने का फैसला पुर्व उप मुख्यमंत्री ने लिया, और फिर सवाल उठता है कि यह खामोशी किसकी ओर इशारा कर रही है? क्या यह नीतीश कुमार के लिए संकेत है कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में वे अकेले रह गए हैं या फिर यह संकेत है कि जनता को अब सिर्फ ‘सॉफ्ट पॉलिटिक्स’ दिखाकर उन्हें शांत किया जा रहा है?
नीतीश कुमार का शांत रहना इस काहानी में ‘साइलेंट हीरो’ के रूप में सामने आता है। वे जैसे भूल-भूलैया में चल रहे हैं, लेकिन हर कदम पर मुस्कुराहट और चुप्पी से जवाब दे रहे हैं। क्या ये वही ‘सही रास्ता’ है, जो बिहार की राजनीति को एक नई दिशा दे सकता है? या फिर यह एक और ट्विस्ट होगा, जहां सारी राजनीति एक और घुमावदार मोड़ लेगी और सीधा नहीं चलेगी?
ललन सिंह ने अपनी ताजगी में कहा कि एनडीए मजबूत है और जदयू-भा.जा.पा. एकजुट हैं, जैसे कोई सियासी थ्योरी जो सदियों पुरानी हो, लेकिन तेजस्वी यादव ने इसे नकारते हुए कहा कि “नया साल, नई सरकार”, और यहीं पर राजनीति का खेल और भी दिलचस्प हो जाता है। क्या बिहार में अब बदलाव की हवा चलने वाली है? या यह सिर्फ एक और ‘राजनीतिक यू टर्न’ होगा?
अब सवाल यह है कि क्या बिहार की राजनीति सच में “नया साल, नई सरकार” देखने जा रही है, या फिर यह सब एक भुलभूलैया बनकर रह जाएगा, जहां हर कदम पर नेताओं के फैसले उलझते जाएंगे और जनता फिर से यह सोचती रहेगी—क्या ये सच्चाई है या सिर्फ एक और ‘राजनीतिक थ्रिलर’?
खैर, जैसे फिल्में होती हैं, वैसे ही राजनीति के भुलभूलैया में हर कदम एक नया मोड़ लाता है। अब देखना यह है कि बिहार की सियासी कहानी अगले चैप्टर में किस दिशा में बढ़ती है।