लखनऊ / नई दिल्ली : Hathras Stampede Case – एसआईटी की रिपोर्ट मिलते ही योगी सरकार ने छह अधिकारियों को किया निलंबित, सत्संग के मुख्य आयोजक मिले दोषी, सुप्रीम कोर्ट में मामला सूचीबद्ध। हाथरस के सिकंदराराऊ में गत 2 जुलाई को सत्संग के दौरान मची भगदड़ से हुए हादसे में 121 लोगों मारे जाने के मामले की जांच एसआईटी ने पूरी कर ली है। सोमवार को एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट शासन को दाखिल कर दी थी और मंगलवार को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पूरे मामले में सीधे तौर पर दोषी या जिम्मेदार मिले अधिकारियों को तुरंत नाप दिया है।
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नपने वालों में एसडीएम सिकन्दराराऊ, सीओ सिकन्दराराऊ, थानाध्यक्ष सिकन्दराराऊ, तहसीलदार सिकन्दराराऊ, चौकी इंचार्ज कचौरा और चौकी इंचार्ज पोरा शामिल हैं।
एसआईटी ने सत्संग के आयोजकों को पाया सीधे तौर पर हादसे का दोषी
हाथरस हादसे के तत्काल बाद गठित एडीजी जोन आगरा और मंडलायुक्त अलीगढ़ की एसआईटी ने 2, 3 और 5 जुलाई को घटनास्थल का निरीक्षण किया था। एसआईटी ने जांच के दौरान कुल 125 लोगों का बयान लिया गया। इनमें प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ आम जनता और प्रत्यक्षदर्शियों का बयान भी लिया गया।
इसके अलावा, घटना के संबंध में प्रकाशित समाचार की प्रतियां, स्थलीय विडियोग्राफी, छायाचित्र, विडियो क्लिपिंग का संज्ञान लिया गया। एसआईटी ने प्रारंभिक जांच में चश्मदीद गवाहों व अन्य साक्ष्यों के आधार पर दुर्घटना के लिए कार्यक्रम आयोजकों को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है। जांच समिति ने अब तक हुई जांच व कार्यवाही के आधार पर हादसे के पीछे किसी बड़ी साजिश से भी इनकार नहीं किया है और गहन जांच की जरूरत बताई है।
जांच समिति ने कार्यक्रम आयोजक और तहसील स्तरीय पुलिस व प्रशासन को भी दोषी पाया है। स्थानीय एसडीएम, सीओ, तहसीलदार, इंस्पेक्टर, चौकी इंचार्ज द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन करने में लापरवाही के जिम्मेदार हैं।
एसआईटी का खुलासा- हादसा होते ही मौके से भागे आयोजक मंडली के सदस्यगण
उप जिला मजिस्ट्रेट सिकन्दराराऊ द्वारा बिना कार्यक्रम स्थल का मुआयना किए आयोजन की अनुमति प्रदान कर दी गई और वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत भी नहीं कराया। इन अधिकारियों द्वारा कार्यक्रम को गंभीरता से नहीं लिया गया और वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत भी नहीं कराया गया। एसआईटी ने जांच में पाया कि आयोजकों ने तथ्यों को छिपाकर कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति ली। अनुमति के लिए लागू शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया।
आयोजकों द्वारा अप्रत्याशित भीड़ को आमंत्रित कर पर्याप्त और सुचारु व्यवस्था नहीं की गई। न ही कार्यक्रम के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा दी गई अनुमति की शर्तों का पालन किया गया। आयोजक मंडल से जुड़े लोग अव्यवस्था फैलाने के दोषी पाए गए हैं। इनके द्वारा जिन लोगों को बिना विधिवत पुलिस वेरिफिकेशन के जोड़ा गया, उनसे अव्यवस्था फैली। आयोजक मंडल द्वारा पुलिस के साथ दुर्व्यवहार किया गया। स्थानीय पुलिस को कार्यक्रम स्थल पर निरीक्षण से रोकने का प्रयास किया गया।
सत्संगकर्ता और भीड़ को बिना सुरक्षा प्रबंध के आपस में मिलने की छूट दी गई। भारी भीड़ के दृष्टिगत यहां किसी प्रकार की बैरीकेटिंग या पैसेज की व्यवस्था नहीं बनाई गई थी और हादसा घटित होने पर आयोजक मंडल के सदस्य घटनास्थल से भाग गए।

अब सुप्रीम कोर्ट में होगी हाथरस हादसे की सुनवाई, याचिका हुई सूचीबद्ध
सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस हादसे की जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की तारीख दे दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिका को सूचिबद्ध करने के निर्देश दिया। याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को 2 जुलाई को घटना पर एक रिपोर्ट तैयार करने और अधिकारियों के खिलाफ लापरवाही के लिए कार्रवाई शुरू करने की मांग की गई है। भगदड़ की जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति की नियुक्ति की मांग की गई है।
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 2 जुलाई को भोले बाबा के सत्संग में भगड़द मच गई, जिसमें 121 लोगों की मौत हो गई। करीब ढाई लाख से भी अधिक श्रद्धालु दो जुलाई को हाथरस जिले का फुलरई गांव में भोले बाबा के सत्संग में शामिल हुए थे। सत्संग में राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा सहित कई राज्यों के लोग आए थे। भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाहनों की संख्या तीन किलोमीटर तक फैली हुई थी।
बाबा के सत्संग समाप्ति की घोषणा के साथ ही बाबा की प्राइवेट आर्मी ने कार्यक्रम स्थल की सारी व्यवस्था को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया लेकिन भीड़ को संभालने के लिए न ही बाबा की निजी आर्मी और न ही पुलिसकर्मी पर्याप्त थे। पुलिस जांच में मिला है कि जब बाबा का काफिला निकला तब भीड़ को रोक दिया गया। इस दौरान चरणों की रज लेने के चक्कर में अनुयायी अनियंत्रित हो गए। भगदड़ के दौरान लोग मरते रहे और बाबा के कारिंदे गाड़ियों से भागते रहे। किसी ने भी रुककर हालात को जानने की कोशिश नहीं की। हादसे में पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर भी लापरवाही सामने आई।