अब बदलेगा झारखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष !

रांची: लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही झारखंड में पार्टियों के आलाकमान में बदलाव दिखाई दे रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की तबदीली के साथ ही, अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की बदलाव की तैयारी भी हो रही है।

यह बदलाव न केवल लोकसभा चुनाव के दौरान हो रहा है, बल्कि विधानसभा चुनाव के लिए भी यह महत्वपूर्ण है।

भाजपा ने झारखंड में आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को पार्टी की कमान सौंपने का निर्णय लिया है, इसलिए कांग्रेस के भीतर भी आदिवासी नेताओं के संबंध में चर्चा छिड़ गई है।

कांग्रेस के अहम पदाधिकारी ने इसके संदर्भ में बताया कि जब विपक्ष आदिवासी नेताओं के साथ रणनीति तय कर रहा है, तो कांग्रेस के भी आदिवासी नेताओं को सम्मिलित करने में कोई गलती नहीं है। सवाल यह है कि आदिवासी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे की वजह क्या है।

पार्टी के पदाधिकारियों के मुताबिक, कई संकेत दिख रहे हैं जो आदिवासी नेताओं को सामने लाने की बात कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान, भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए बाबूलाल मरांडी जैसे आदिवासी नेता को सामने रखा है।

ऐसे में, कांग्रेस को भी आदिवासी नेताओं को सामने लाने की आवश्यकता है। इन दिनों, आदिवासी नेताओं की भूमिका झारखंड में महत्वपूर्ण है। प्रदेश में झामुमो का नेतृत्व करने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ, भाजपा ने प्रदेश संगठन की कमान बाबूलाल मरांडी को सौंप दी है। इसी कारण कांग्रेस की कमान भी आदिवासी नेताओं को सौंपने की संभावना है।

कांग्रेस में जिन आदिवासी नेताओं के संबंध में चर्चा चल रही है, उनमें पार्टी के उपाध्यक्ष कालीचरण मुंडा और कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की शामिल हैं। केंद्र स्तरीय नेताओं के साथ भी यह निर्णय संभव है। इनकी ऊँचाई राष्ट्रीय स्तर पर है। सुबोधकांत सहाय ने केंद्र में मंत्री के पद पर भी कार्य किया है।

भाजपा ने बाबूलाल मरांडी जैसे केंद्र स्तरीय नेता पर भरोसा किया है, इसलिए कांग्रेस के पास भी इसी तरह के विकल्पों को मजबूत रखने की आवश्यकता है। कांग्रेस के पास केंद्र स्तरीय नेता डॉ. अजय कुमार और सुबोधकांत सहाय हैं। सूत्रों के मुताबिक, डॉ. अजय कुमार को केंद्र में जिम्मेदारी दी जाती है और इसलिए अन्य विकल्पों की विचारधारा विचार की जाएगी।

इस संदर्भ में, आज भी सुबोधकांत सहाय का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए उठ रहा है। उनका कद राष्ट्रीय स्तरीय नेता का है और केंद्रीय आलाकमान के द्वारा भी पसंद किया जा सकता है।

सुबोधकांत सहाय ने पहले केंद्रीय मंत्री के पद पर भी कार्य किया है। भाजपा के वोटों में चढ़ावा लाने के लिए, कांग्रेस को आदिवासी नेताओं को सामने लाने या फिर राष्ट्रीय स्तरीय नेता को समर्थित करने के बारे में सोचना होगा।

2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान, कांग्रेस ने झामुमो-राजद के साथ मिलकर लड़ा था। आने वाले चुनावों में भी यह संभावित है कि दोनों दल मिलकर लड़ेंगे। महागठबंधन के तहत, आदिवासी नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुख्य नेता के रूप में बने रहेंगे।

इस प्रकार में, कांग्रेस के आलाकमान में सुबोधकांत सहाय का होना किसी भी आश्चर्य की बात नहीं है।

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