रांची: झारखंड विधानसभा में मंगलवार को आउटसोर्सिंग एजेंसियों के खिलाफ जमकर हंगामा हुआ। विधायक प्रदीप यादव ने राज्य सरकार से तीखे सवाल पूछते हुए आरोप लगाया कि सचिवालय से लेकर जिला मुख्यालय और प्रखंड मुख्यालय तक संविदा पर रखे गए कर्मचारियों के साथ भारी शोषण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि लिपिक, चतुर्थवर्गीय कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड समेत अन्य पदों पर एजेंसियों के माध्यम से भर्तियां की जा रही हैं, जहां युवाओं से मोटी रकम वसूली जाती है और उनके मानदेय में कटौती की जाती है।
आउटसोर्सिंग एजेंसियों पर गंभीर आरोप
आउटसोर्सिंग एजेंसियों पर गंभीर आरोप लगे है। प्रदीप यादव ने कहा कि सरकार ने 13 एजेंसियों को चयनित किया है, जिनमें से 6 एजेंसियां बाहर की हैं, जैसे भुवनेश्वर, मुंबई, बेंगलुरु और पटना की कंपनियां शामिल हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब एजेंसियों की निविदा सिर्फ दो साल के लिए होती है, तो चार साल बाद भी वही कंपनियां क्यों काम कर रही हैं?
उन्होंने कहा कि झारखंड के युवाओं को रोजगार देने के बजाय बाहरी एजेंसियों को प्राथमिकता दी जा रही है, जो उनके मानदेय का एक बड़ा हिस्सा डकार रही हैं। उन्होंने सरकार से पूछा कि अब तक कितनी एजेंसियों पर कार्रवाई हुई है और कितनों के खिलाफ जांच चल रही है।
सरकार ने दिया जवाब, एक महीने में रिपोर्ट पेश करने का आश्वासन
मंत्री रामदास सोरेन ने जवाब देते हुए कहा कि सरकार मैनपावर की भर्ती चयनित एजेंसियों के माध्यम से करती है और यदि किसी एजेंसी के खिलाफ शिकायत मिलती है, तो आवश्यक कार्रवाई की जाती है। उन्होंने बताया कि एक एजेंसी के खिलाफ पहले ही कार्रवाई की जा चुकी है और यदि अन्य एजेंसियों पर भी आरोप साबित होते हैं, तो कड़ी कार्रवाई होगी।
इसके बाद भी प्रदीप यादव संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने मांग की कि सरकार सभी जिलों के उपायुक्तों से रिपोर्ट मंगवाए कि किन कर्मचारियों को वेतन मिला है और किन्हें नहीं। साथ ही, उन्होंने आग्रह किया कि सरकार जिला स्तर पर टेंडर जारी करे ताकि झारखंड की स्थानीय एजेंसियां भी भाग ले सकें और बड़े शहरों की कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो।
राज्य में आउटसोर्सिंग नीति की जरूरत
प्रदीप यादव ने कहा कि सरकार पहले भी इस मुद्दे को संज्ञान में ले चुकी है और 14 सितंबर 2023 को तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक कर एक व्यापक नीति बनाने पर चर्चा हुई थी। उन्होंने सरकार से मांग की कि जल्द से जल्द इस पर रिपोर्ट ली जाए और एक ठोस नीति बनाई जाए, जिससे आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का शोषण बंद हो और आरक्षण नीति का पालन हो।
मंत्री रामदास सोरेन ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि विभागीय स्तर पर जांच कर एक महीने के भीतर रिपोर्ट पेश की जाएगी। साथ ही, झारखंड की स्थानीय एजेंसियों को प्राथमिकता देने के विषय में विचार किया जाएगा।
झारखंड विधानसभा में यह मुद्दा फिलहाल गरमाया हुआ है और आने वाले समय में सरकार की कार्रवाई पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।